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राजस्थान के एक गॉंव फलोदी में सन् 1939 में जन्म लिया।कुछ समय बाद ही पिताजी वकालत करने जोधपुर आ गये। राजस्थान युनिवर्सिटी से सन् 1960 में हिन्दी साहित्य में एमण् एण्की डिग्री हासिल की। शादी के बाद 1964 में जोधपुर युनिवर्सिटी से हिन्दी साहित्य में पी एच डी भी कर ली। फिर लम्बे अरसे तक घर. परिवार में रमी रही। वक्त मिलता तो पढ़ाई का उपयोग कर कुछ अर्थोपार्जन करने का मन होता था पर मौका नहीं मिल पाया और न घर की प्राथमिकता ही छूट पाई। मुम्बई में रहते हुए अंग्रे़जी के बढ़ता असर देख कर अच्छा भी नहीं लगता था। सोच लिया अपनी भाषा और संस्कृति के लिये ही जब कर पाऊंगी कुछ करूंगी। पर कुछ समझ नहीं आया कब कैसे माता- पिता के प्रभाव से दर्शन शास्त्रों की ओर रूचि बचपन से ही थी। शादी के बाद सास-श्वसुर के भी भक्ति ज्ञान व समर्पण के भावों से वह और भी बढ़ गई।

डॉक्टर पति उस ज्ञान को व्यवहारिक रूप देते ही थे।उनके साथ कभी अकेले भी कृष्णमूर्ति रजनीश श्री रविशंकर जग्गी वासुदेव आदि को सुनती पढ़ती रही और उनके कैम्पों में भी भाग लेती रही। फिर 1987 में अचानक सबसे छोटे भाई का कार एक्सिडेंट में देहान्त हो गया। उसके साथ एक बहिन व बहिनोई भी काल. कवल्त हो गये थे। विधि की लीला. उनकी डेढ़ वर्ष की बच्ची को खरौंच भी न आई।

पूरे परिवार पर उस हादसे के असर ने मुझमें जैसे आमूल परिवर्तन कर दिया।घर शरीर की संभाल स्वाद आदि में कोई रुचि न रही। बाहरी जीवन से मन पूरा उचाट हो गया। रजनीश के अष्टावक्र पर दिये गये तीन प्रवचन पूना जाकर सुने और बिजली कौंध गई। लगा पूरे परिवार को दुरूख से कुछ राहत देने का कार्य यह अष्टावक्र गीता कर पायेगी।

पर परिवार में सब तो संस्कृत नहीं जानते थे। मन ने कहा. तू अनुवाद कर। सोच में पड गई। वैसे एम ए की पढ़ाई के दौरान जब मन आता पाली भाषा से हिन्दी में जातकों का अनुवाद कर देती थी। फिर पढ़ाई के दौरान ही संस्कृत की परीक्षाऐं भी पास कर लीं थीं वही पढा.लिखा ज्ञान तब काम आया। शुरू -शुरू का अदम्य उत्साह था तीन महीने में ही पूरी पुस्तक का अनुवाद हो गया।परिवार के लोगों और मित्रों ने सराहा तो पति महोदय ने पुस्तक छपवा दी। व्यवसायिक लाभ की इच्छा ही नहीं थी पर आत्म विश्वास बढ़ गया और धीमे.धीमे संस्कृत के साथ अंग्रेज़ी में उपलब्ध दर्शन की पुस्तकों का भी अनुवाद करने लगी। कभी.कभी अपने मन के भाव व विचारों को भी लिखित रूप देती रही गद्य से अधिक पद्य में। मेरी बड़ी लड़की की दिली तमन्ना – इन पुस्तकों को सर्व साधारण के लिये उपलब्ध करवाना अब वह पूरी कर रही है. आज के युग की इस नई तकनीक. इंटरनेट के जरिये।

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